ये गाँधी के सपनों का भारत नहीं .

ये गाँधी के सपनों का भारत नहीं .
Mere Sapno Ka Bharat

  के .एन .कौल कहते हैं -
''खुद रह गया खुदा भूल गया ,
   भूलना किसको था क्या भूल गया .
      याद हैं मुझको तेरी बातें लेकिन ,
         तू ही कुछ अपना कहा भूल गया .''
देश के संविधान का संरक्षक उच्चतम न्यायालय स्वयं नियम बनाता है और तोड़ता है .वक़्त का परिवर्तन उसे इसके लिए विवश करता है किन्तु जब सुधार की ओर बढ़ते कदम रोक दिए जाते हैं तो विवाद उठने स्वाभाविक हैं .
मो. गयासुद्दीन बनाम स्टेट ऑफ़ यू.पी.ए.आई.आर.१९७७ अस.सी. १९२६ ,१९२९ में उच्चतम न्यायालय कहता है -
''अपराध एक व्याधिकृत [PATHOLOGICAL ] पथ भ्रष्टता [ABERRATION ]है ,अपराधी का साधारणतया उद्धार किया जा सकता है .राज्य को प्रतिशोध की बजाय पुनर्वास [REHABILITATE  ] करना है निम्न मनः संस्कृति [sub -culture  ] जो समाज विरोधी आचरण की ओर ले जाती है ,का निराकरण असम्यक निर्दयता से नहीं अपितु पुनः संस्कृतिकरण से किया जाना है .इसलिए दंड शास्त्र में दिलचस्पी का केंद्र बिंदु व्यक्ति है और उद्देश्य समाज के लिए उसका उद्धार करना है .कठोर और बर्बर दंड देना भूतकाल और प्रतिगामी काल की यादगार है .आज मानव दंडादेश को उस मनुष्य की पुनर्निर्माण की प्रक्रिया के रूप में लेता है जिसका पतन अपराध करने में हो गया है और सामाजिक प्रतिरक्षा के एक साधन के रूप में अपराधी पुनर्वास में आधुनिक समाज का प्राथमिक हित है .इसलिए आतंक के बजाय एक चिकित्सीय दृष्टिकोण हमारे दंड न्यायालयों द्वारा ग्रहण किया जाना चाहिए क्योंकि व्यक्ति का पशु की तरह बंदी बनाया जाना उसके मस्तिष्क को मरोड़ देता है .''और अपने इसी मत का अनुसरण उच्चतम न्यायालय ने राकेश कुमार बनाम बी.एल.विग ,सु. सेन्ट्रल जेल तिहाड़ ए.आई.आर १९८१ एस.सी.१९६७ में किया जब उसने यह कहा कि -''दंडादेश का दांडिक प्रयोजन सुधारात्मक है .''
    ऐसे में संजय दत्त को उनके अपराध के लिए जेल भेज दिए जाने में उच्चतम न्यायालय को कौन सा सुधार नज़र आया है यह हम नहीं कह सकते हाँ इतना अवश्य कह सकते हैं कि उन्हें जेल भेजकर उच्चतम न्यायालय ने सुधार की ओर बढ़ते एक मस्तिष्क को मोड़ने का प्रयास अवश्य किया है .

       
महात्मा गाँधी जी ने कहा था कि -;;पाप से घृणा करो ,पापी से नहीं .''और हम इस कथन पर अमल करें या नहीं किन्तु अपराध किये जाने पर १८ महीने जेल की सजा भुगत चुके संजय दत्त जो २० साल से सुधारात्मक राह पर चल पड़े हैं और एक सभ्य  नागरिक के रूप में अपने प्रशंसकों को आदर्श समाज की स्थापना के लिए प्रेरित कर रहे हैं ,को जेल में धकेल कर तो यही साबित कर रहे हैं कि भारत आज गाँधी के सपनो का भारत नहीं क्योंकि यहाँ पाप से नहीं पापी से ही घृणा की जाती है .अंत में लक्ष्मी शंकर वाजपेयी जी के शब्दों में यही कहूँगी -''जो जहाँ है ,वहीँ पर परेशान है ,
वक़्त सब पर बराबर मेहरबान है ,
पूरी दुनिया की रखता हूँ यूँ तो खबर ,
आदमी सिर्फ अपने से अंजान है ,
बेरुखी ही मिलेगी यहाँ हर तरफ ,
ये शहर है ,यही इसकी पहचान है ,
जिसपे मिलते थे इंसानियत के कदम ,
वो सड़क दूर तक आज वीरान है .''
       शालिनी कौशिक 
               [कौशल ]

टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (17-05-2013) के राजनितिक वंशवाद की फलती फूलती वंशबेल : चर्चा मंच-...1247 में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सही कहा है आपनें !!
vandana gupta ने कहा…
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(18-5-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
सूचनार्थ!
बिल्कुल सही
मैं सहमत हूं, मुझे लगता है कि संजय के मामले में दिमाग से नहीं दिल से सोचा जाना चाहिए था।
मुझे लगता है कि जजों को भी अब संजय से शिकायत नहीं है, लेकिन "कानून सबके लिए बराबर" है का संदेश देने के लिए संजय को जेल भेजा गया है।
Neetu Singhal ने कहा…
जिस प्रकार "सकल ताल मलिन करत एकहि मीन"
उसी प्रकार एक अपराधी यदि समाज के बीच खुला
घूमें तो सारा समाज गंदा हो जाता है......
Neetu Singhal ने कहा…
जिस प्रकार "सकल ताल मलिन करत एकहि मीन"
उसी प्रकार एक अपराधी यदि समाज के बीच खुला
घूमें तो सारा समाज गंदा हो जाता है......
वास्तव में हमारे देशवासियों ने गांधीवाद पर भीषण प्रहार किया है !
सचमुच हमारे देश क ने 'गांधीवाद' को मार दिया है! !
सचमुच हमारे देश ने गांधीवाद को मार दिया है !
दो एक से मामलों में उच्‍चतम न्‍यायालय के अलग-अलग मत वाकई ठीक नहीं हैं।
Suman ने कहा…
सार्थक आलेख ...आभार !
Ranjana verma ने कहा…
आपने बिल्कुल सही कहा है....
मुझे साझा करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया !
Ranjana verma ने कहा…
आपने बिल्कुल सही कहा है.....
मुझे साझा करने के लिएबहुत बहुत शुक्रिया !
Ranjana verma ने कहा…
आपने बिल्कुल सही कहा है.....
मुझे साझा करने के लिएबहुत बहुत शुक्रिया !
इस शहर की मण्डी का कानून निराला है
बिक जाती हैं कलियाँ भी काँटों की दुकानों में...

हम यहाँ श्री महेंद्र श्रीवास्तव जी के कथन से सहमत हैं..यूँ भी यह क़ानूनी मसला है और उच्चतम न्यायालय का फैंसला है...वैसे भी प्रायश्चित से सजा कम हो सकती है या कुछ एनी रियायतें दी जा सकती हैं (जैसा की इस केस में हुआ भी है) पर गुनाह को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता...
Dr. sandhya tiwari ने कहा…
itna sab kuch ho raha hai to ye gandhi ke sapno ka bharat kaise hoga ..............

"कानून सबके लिए बराबर" है
डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
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शायद क़ानून एक हो सबके लिए ... यही प्रथा और मजबूत करना चाहता है सर्वोच्च न्यालय ...
Ramakant Singh ने कहा…
बेबाक कथन और सच को झुठलाते कहानी को बयान करती सत्य के उद्घाटन के लिए बधाई
Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…
बहुत ही सारगर्भित तरीके से आपने एक सम्बेदन शील बिषय को छुआ..मैं भी आपसे सहमत हूँ पर दूसरी तरफ लगता है सजा तो हो पर एक प्रतीक की तरह हो जाए ..बहुत थोड़ी अवधि के लिए ..ताके यह संदेश भी जाए की गलती की सजा तो मिलेगी पर यदि आप से समाज आश्हवस्त हो जाए की आप उसकी मुख्य धारा में शामिल रहेंगे तो क़ानून भी दयावान हो सकता है ..मुझे बेहद अच्छा लगा यह लेख..बहुत सारी बधाई के साथ ..मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है

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