कल्पना पुरुष मन की .




अधिकार 
सार्वभौमिक सत्ता 
सर्वत्र प्रभुत्व 
सदा विजय 
सबके द्वारा अनुमोदन 
मेरी अधीनता 
सब हो मात्र मेरा 

कर्तव्य 
गुलामी 
दायित्व ही दायित्व 
झुका शीश 
हो मात्र तुम्हारा 
मेरे हर अधीन का 

बस यही कल्पना 
हर पुरुष मन की .

शालिनी कौशिक 
   

टिप्पणियाँ

Shikha Kaushik ने कहा…
YOU HAVE GIVEN RIGHT VIEW OVER MALE THINKING .
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज बृहस्पतिवार (22-05-2013) के झुलस रही धरा ( चर्चा - १२५३ ) में मयंक का कोना पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहजीवन में सबको जीवन..
virendra sharma ने कहा…
व्यक्तियों की दो अलग अलग स्ट्रेंस का शब्द चित्र एक में शासन करने की दुर्दम्य इच्छा दूसरे में झुकाने झुकने झुकते चले जाने की विवशता .दोनों देह अभिमान से संचालित हैं मनो भाव .दृष्टा बन जीवन को देखें जियें ....ॐ शान्ति .
virendra sharma ने कहा…
व्यक्तियों की दो अलग अलग स्ट्रेंस का शब्द चित्र एक में शासन करने की दुर्दम्य इच्छा दूसरे में झुकाने झुकने झुकते चले जाने की विवशता .दोनों देह अभिमान से संचालित हैं मनो भाव .दृष्टा बन जीवन को देखें जियें ....ॐ शान्ति .
कर्तव्य
गुलामी
दायित्व ही दायित्व
झुका शीश

बहुत सुंदर रचना,,,
Recent post: जनता सबक सिखायेगी...
Prashant Suhano ने कहा…
सुन्दर पंक्तियां हैं.. महत्वाकांक्षा और अहंकार को दर्शाती..
क्या कहूं....
बढिया।



मेरे TV स्टेशन ब्लाग पर देखें । मीडिया : सरकार के खिलाफ हल्ला बोल !
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/05/blog-post_22.html?showComment=1369302547005#c4231955265852032842
अधिकार
सार्वभौमिक सत्ता
सर्वत्र प्रभुत्व
सदा विजय
सबके द्वारा अनुमोदन
मेरी अधीनता
सब हो मात्र मेरा

काफी हद तक सच ....
सुन्दर रचना
साभार !
vijai Rajbali Mathur ने कहा…
ऐसा मन तो 'मननशील' होने के 'मनुष्य' के मौलिक गुणों के विपरीत है।
यह सिर्फ पुरुष मन की नहीं अपितु अहं-युक्त मन की कल्पना है ...वह स्त्री या पुरुष दोनों ही हो सकते हैं....हुए भी हैं इतिहास में ....
--बस पुरुष मन अधिक मुखर होता है स्त्री अंतर्मुखी.....

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