विश्व जनसँख्या दिवस
आज सुबह रेडियो मिर्ची सुन रही थी तो अनंत और सौरभ के कार्यक्रम से पता लगा कि आज विश्व जनसँख्या दिवस है .पता तो ये बहुत पहले से था तबसे जबसे इस दिन विश्व की जनसँख्या ६ अरब हो गयी थी पर ये हम जैसे लोगों को यद् भी क्यों रहेगा जिनका परिवार पहले से ही बहुत छोटा है जब ये उन्ही लोगों को याद नहीं रहता जिन्होंने आज देश विश्व सभी की स्थिति बहुत बिगाड़ दी है.
जब भी बचपन में कोई निबंध याद करते थे जनसँख्या से सम्बंधित तो उसमे इसके कारण में एक बड़ा कारण ''अशिक्षा''लिखा जाता था और हमें जब भी कोई अनपढ़ दिखाई देता था हम उसे देख कर देश की ख़राब स्थिति के लिए जिम्मेदार मान लेते थे पर आज जब हमें कहने को काफी समझ आ चुकी है तब हम अपने आस पास के बहुत से ऐसे परिवार देख रहे हैं जो कहने को सुशिक्षित है,सभ्य हैं और उनके बहुत बड़े बड़े परिवार हैं.भारतीय समाज बेटे के होने तक बच्चे करता ही रहता है और अब ये लालसा इतनी आगे बढ़ चुकी है कि एक बेटा हो जाये तो कहा जाता है कि ''दो तो होने ही चाहियें''.
आज जो भारत या कहें सरे विश्व में स्थिति है उसके जिम्मेदार हमारे पूर्वजों को ही कहा जायेगा.अपनी मम्मी और दादी से मैंने जाना कि पहले औरतें इस तरह के कॉम्पिटिशन किया करती थी और तो और यदि कोई महिला एक या दो ही बच्चे करती थी तो और औरतें उसे उकसाकर और बच्चे करा लिया करती थी.हमारी जानकर ही एक आंटी जो एक स्कूल में शिक्षिका हैं उनके दो ही बच्चे थे एक बेटा और एक बेटी पर उन्हें और औरतों ने ये कह कर ''कि क्या दो हो बच्चे करके रह गयी''उकसा दिया और अब उनके तीन बच्चे हैं और बड़े भाई बहन से उस बच्चे का अंतर लगभग ८ साल का है.चलिए यहाँ तो फिर भी खैर है हमारे एक अंकल जिनके सबसे पहले बेटा हुआ और जो अपनी बातों से भी काफी आधुनिक नज़र आते हैं उसके बाद ४ लड़कियां बेटे बढ़ने की ख्वाहिश में कर ली.और एक पडोसी जो कि इंटर कोलेज में प्रवक्ता हैं उनके दो बेटियों के बाद एक बेटा हो गया तब भी उनकी इच्छा बेटे के लिए ख़त्म नहीं हुई और उन्होंने उसके बाद तीन बेटियां और पैदा कर ली इसी तरह हद तो एक और अंकल ने की है जिनके एक के बाद एक बेटे होते रहे और वे करते रहे सात बेटे इस तरह उन्होंने देश की जनसँख्या में बढ़ा दिए हाँ रुके वे तभी जब आठवें नंबर पर बेटी हो गयी.ये तो कुछ लोग हैं जिन्होंने आने वाली पीढ़ियों के लिए मुश्किलें पैदा कर दी हैं और मैं नहीं मान सकती इसलिए यह बात कि अशिक्षित लोग इसके लिए ज्यादा उत्तर दायी हैं जब मेरे सामने ऐसे उदाहरन हैं और हो सकता है कि आपके सामने भी हों.आज इसी कारण यह भयावह स्थिति पैदा हो गयी है कि अब यदि किसी के दो बच्चें भी हों तो जनसँख्या का बोझ बढ़ता दिखाई देता है.
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
बधाई ||
अच्छी प्रस्तुति ||
Nice read..
हम चीन तो हो नहीं सकते की जबरन नियंत्रण कर लें..यहाँ तो रेंज १ से १ दर्जन सबकी है..
नारी शसक्तीकरण की बातों से ऊपर उठकर उसका क्रियान्वयन करने से शायद विभेद मिट पाए ..
मेरी भी प्रतिक्रिया यही है!
बहुत बढ़िया सार्थक प्रस्तुति!
बेटा और बेटी का फर्क जिस दिन समाप्त हो जायेगा जनसँख्या वृद्धी पर अवश्य अंकुश लगेगा - आवश्यक चिंतन - सार्थक एवं प्रेरक आलेख
लेकिन मुस्लिम अभी अल्ला की देन ही मानते है, उन्हे भी सुधरना होगा,
तभी ये जनसँख्या का सैलाब रुक पायेगा।
shaayd humein yahaan hindu mmuslim ki baat nahee karniu chahiye, its just the matter of awareness and future forecasting.
आपके तार्रुफ़ का,
आपकी हौसला अफजाई का,
आपके बड़प्पन का,
तहे दिल से शुक्रिया,
अदा करता हूँ,
आपने इस जहाँ से मेरा तार्रुफ़ करवाया |
आपने इस जहाँ से मुझे जुड़वाया |
आपने इस जहाँ से मुझे प्यार दिलवाया |
आपका तहे दिल से बहुत-बहुत शुक्रिया |