पर ये तन्हाई ही हमें जीना सिखाती है.
ये जिंदगी तन्हाई को साथ लाती है,
हमें कुछ करने के काबिल बनाती है.
सच है मिलना जुलना बहुत ज़रूरी है,
पर ये तन्हाई ही हमें जीना सिखाती है.
यूँ तो तन्हाई भरे शबो-रोज़,
वीरान कर देते हैं जिंदगी.
उमरे-रफ्ता में ये तन्हाई ही ,
अपने गिरेबाँ में झांकना सिखाती है.
मौतबर शख्स हमें मिलता नहीं,
ये यकीं हर किसी पर होता नहीं.
ये तन्हाई की ही सलाहियत है,
जो सीरत को संजीदगी सिखाती है.
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
तन्हाई मतलब अपना समय ||
कोई दखलंदाजी नहीं--
तुम्हारे सिवा ||
बधाई शालिनी जी ||
.....यह बिम्ब और भाव का शब्दिक अवतरण दोनों बेमिसाल ......
कमाल लिखा है आपने...
आदर सहित
ये यकीं हर किसी पर होता नहीं.
ये तन्हाई की ही सलाहियत है,
जो सीरत को संजीदगी सिखाती है.
Sahee hai...lekin kabhi,kabhi tanhaayee andartak tod bhee detee hai...
ये यकीं हर किसी पर होता नहीं.
ये तन्हाई की ही सलाहियत है,
जो सीरत को संजीदगी सिखाती है।
शालिनी जी आपके पोस्ट पर पहली बार आया हूँ। पोस्ट अच्छा लगा। बहुत ही सुंदर। मेरे पोस्ट पर भी आपका स्वागत है।धन्यवाद।
वरना ये जीस्त तो बस यूंही गुजर जाती है
जब तलक झेलते रेले हो तुम इस मेले में
न समझ पाओगे दुनिया कहाँ ले जाती है
एकांत में पलभर में ध्यान लग जायेगा
औ ख्यालों में 'वो' चुपके से आ जायेगा
पर ये तन्हाई ही हमें जीना सिखाती है.
थोड़े शब्दों में बहुत कुछ , सुन्दर प्रस्तुति , आभार
अपने गिरेबाँ में झांकना सिखाती है.
rightly said..
जो सीरत को संजीदगी सिखाती है '
.............सुन्दर रचना
...........तन्हाई मिलन की ख़ुशी को कई गुना बढ़ा देती है
............
प्रेम एक दलदल है..
’चोंच में आकाश’ समा लेने की जिद।
सच्ची बात... अच्छी अभिव्यक्ति...
सादर...