अपनी रूह होती .
न मिलती गर जिंदगी हमें फारिग़ अपनी रूह होती,
न पशेमानी कुछ न करने की न रंजीदा अपनी रूह होती .
जिंदगी है इसलिए हमको मिलना मिलकर बिछड़ना होता,
ये न होती तो न रगबत कोई न तहीदस्त अपनी रूह होती.
जिंदगी नाम फ़ना होने का न मय्यसर तुम्हे कुछ होगा,
न ज़बूँ तुमको ही मिल पाती न खुश्क अपनी रूह होती.
न होते मुबतला उजालों में तुमको मेरे लिए मोहलत होती ,
तब न महदूद मेरी उमरे-तवील तब न शाकी अपनी रूह होती.
न समझो शादमां मुझको न मसर्रत हासिल ''शालिनी''को ,
बुझेगी शमा-ए-जिंदगी जिस रोज़ कर तफरीह अपनी रूह होती.
शालिनी कौशिक
शब्द-अर्थ:-फारिग़-किसी काम से मुक्त होना, रन्जीदा-ग़मगीन, पशेमानी-शर्मिंदगी , मुब्तला-घिरा हुआ रहना, उमरे-तवील-लम्बी उम्र ,रगबत-चाहत, मसर्रत-ख़ुशी ,शादमां-खुशहाल, तफरीह-घूमना फिरना,मौज-मस्ती करना,शाकी-शिकायत करने वाला,महदूद-हदबंदी ,तहीदस्त-खाली हाथ ,ज़बूँ-जिक्र-मिठास
टिप्पणियाँ
बुझेगी शमा-ए-जिंदगी जिस रोज़ कर तफरीह अपनी रूह होती.
..baut badiya prastuti..