अपनी रूह होती .






न मिलती गर जिंदगी हमें फारिग़  अपनी रूह होती,
न पशेमानी कुछ न करने की न रंजीदा अपनी रूह होती .

जिंदगी है इसलिए हमको मिलना  मिलकर बिछड़ना होता,
ये न होती तो न रगबत कोई न तहीदस्त अपनी रूह होती.

जिंदगी नाम फ़ना होने का न मय्यसर तुम्हे कुछ होगा,
न ज़बूँ तुमको ही मिल पाती न खुश्क अपनी रूह होती.


न होते मुबतला उजालों  में तुमको मेरे लिए मोहलत होती ,
तब न महदूद मेरी  उमरे-तवील तब न शाकी अपनी रूह होती.

न समझो शादमां मुझको न  मसर्रत हासिल ''शालिनी''को ,
बुझेगी शमा-ए-जिंदगी जिस रोज़ कर तफरीह अपनी रूह होती.

                                     शालिनी कौशिक 



शब्द-अर्थ:-फारिग़-किसी काम से मुक्त होना, रन्जीदा-ग़मगीन, पशेमानी-शर्मिंदगी , मुब्तला-घिरा हुआ रहना, उमरे-तवील-लम्बी उम्र ,रगबत-चाहत, मसर्रत-ख़ुशी ,शादमां-खुशहाल, तफरीह-घूमना फिरना,मौज-मस्ती करना,शाकी-शिकायत करने वाला,महदूद-हदबंदी ,तहीदस्त-खाली हाथ ,ज़बूँ-जिक्र-मिठास

टिप्पणियाँ

Arvind kumar ने कहा…
maashaa allaah...behtareen ghazal
vidhya ने कहा…
keya kubh kaha aap ne...........
रेखा ने कहा…
बहुत खुबसूरत और उम्दा गजल
S.N SHUKLA ने कहा…
बेहतरीन पोस्ट , बेहतरीन प्रस्तुति , बधाई
कविता रावत ने कहा…
न समझो शादमां मुझको न मसर्रत हासिल ''शालिनी''को ,
बुझेगी शमा-ए-जिंदगी जिस रोज़ कर तफरीह अपनी रूह होती.

..baut badiya prastuti..
सुंदर ...बहुत सुंदर
अच्छी ग़ज़ल लिखी है आपने!
सदा ने कहा…
बहुत खूब कहा है आपने ..आभार ।
amrendra "amar" ने कहा…
SUNDER SABDO SE SAJAY HAI AAPNE WAAH NAHUT UMDA, DIL KO CHU GAYE ALFAJ........

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