चोर पक्के बने हुए हैं.
जोश में खड़े हुए हैं,
हाथ इनके मुड़े हुए हैं .
कवियों ने जो कवितायेँ लिखी
उनको पढने में लगे हुए हैं .
चापलूस चेहरे पर अपने ,
कृत्रिम हंसी लिए हुए हैं.
बाहर बाहर प्रेम दिखाकर,
भीतर भीतर जले हुए हैं.
अपनी टांग को अड़ाकर,
दूसरों में फंसे हुए हैं.
कहने को कवि मगर,
चोर पक्के बने हुए हैं.
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
ऐसे कवियों के तो सपने बहुत बड़े हैं |
दूसरों की कविताओं पे नज़रें गड़े हैं |
chori se hi aadhi duniya roshan hai
बधाई ||