प्रतिबंध के बावजूद कुले आम बिक रहे प्लास्टिक पैकिंग में गुटखे, अधिकारी और प्रशासन बने मूकदर्शक‏: खुशबू(इन्द्री)करनाल


यूँ तो भारत सरकार देश की सामाजिक व्यवस्था में सुधार करने के उदेश्य से आये दिन कोई न कोई कानून बना कर लागू  करती रहती है|  पर इस सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की बदकिस्मती देखिये की यहाँ कानून लागू  कर दिए जाते हैं लेकिन दिखावे के लिए क्योंकि उनका पालन सुनिश्चित नही कराया जाता|कहीं पर लोग कानून का पालन नही करते तो कहीं  पर खुद प्रशासनिक अधिकारी|लोगों को तो क्या कहें सबसे बड़ी खामी प्रशासन की है|हमारे अधिकारी कानूनों का सख्ती से पालन करने के लिए प्रतिबद्ध नही हैं|उन्हें बैठे बैठे खाने की आदत है|एक बार कानून बना दिया और लागू कर दिया बस यहाँ उनकी जिम्मेवारी खत्म हो जाती अहि|जबकि कानून लागू  हो जाने के बाद उसकी पालना सुनिश्चित करना भी उनकी जिम्मेवारी है|आजकल देश में प्लास्टिक पैकिंग पर तथा प्लास्टिक पोलीथिन के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा हुआ है|  सुप्रीम कोर्ट ने भी आदेश जारी कर इस पर प्रतिबंध लगाया है|लेकिन सुप्रीम कोर्ट के प्लास्टिक गुटखा पैकिंग के प्रतिबन्धित करने के बाद से गुटखा के थोक व फुटकर विक्रेताओं की चांदी हो गई है।जिसके चलते फुटकर विक्रेताओं ने एक रूपये प्रिंट वाला गुटखा खुलेआम दो रूपये से लेकर तीन रूपये मे बेचा जा रहा है।वहीं 20रू0 प्रिंट वाला रजनीगन्धा 25रू0 में बिक रहा है एक दुकानदार संजय ने बताया कि हम क्या करें हमें तो थोक विक्रेता ही प्रिंट से अधिक रेट पर माल देता है साथ ही अधिक माल भी नहीं देता जिस कारण गुटखे व पान मसाले खैनी आदि की हमेशा कमी बनी रहती है। कानूनन कोई भी दुकानदार किसी भी वस्तु को अंकित मूल्य से अधिक मूल्य पर नहीं बेच सकता किन्तु यहां पर सारे कानून बेकार साबित हो रहें हैं।आखिर क्यो नहीं हो पा रही है इन गुटखाओ के थोक व फुटकर विक्रेताओं के विरूद्ध कार्यवाही? पुरे जनपद में बिक रहे हैं अनेको प्रकार के गुटखे भी अब महंगे हो गए हैं,जिसके कारण गुटखा खाने वाले लोग चूने वाली तम्बाकू या फिर कपूरी खाने को विवश हैं। कुछ समय पूर्व गुटखे की किमत 50पै0 या 1रू0 का एक पाउच थी लैकिन अब जबसे सर्वाेचय न्यायालय के आदेश से प्लास्टिक पाउच की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगा है तब से एक रूपये का गुटखा तीन रूपये या उससे अधिक में बिकने लगा है। ग्रमीण क्षेत्रों मे तो एक गुटखा चार या पॉच रूपये में भी बिकते हैं वहीं कस्बो में 10रू0 के 3 गुटखे भी मिल जाते हैं महंगे गुटखो के चलते जो लोग दिन में 20 से 30गुटखे खाते थे उन्हें आज दिन में 5-6 गुटखो से गुजारा करना पड रहा है। कुछ विक्रेताओं ने बताया की महंगाई के कारण गुटखों की बिक्री चौथाई ही रह गई है,गुटखे महंगे होने से कपूूरी व पान की बिक्री अधिक होने लगी है। पूर्व प्रधान उमेश चन्द्र ने बताया गुटखा के ब्लैक मे बिकने से जहां गुटखा खाने वालो की जेब पर डाका पड रहा है वहीं महंगाई के चलते 50 गुटखे प्रतिदिन खाने वाले लोग 5 गुटखा प्रतिदिन खाने लगे है जो गुटखा खाने वालो के स्वास्थ्य के लिए काफी हीतकर है इंसानो के लिए गुटखा रोकने का सबसे अच्छा उपाय यह है कि सरकार को प्रति गुटखा 10रू0 मैं बिकवाना चाहिए जिससे गुटखे की  बिक्री न के बराबर रह जाएगी।
खुशबू(इन्द्री)करना

ख़ुशी जी के आलेख मुझे इ-मेल के जरिये प्राप्त होते हैं और ये जानकारियों का भंडार हैं और आज ये प्रसन्नता की बात है की अमर उजाला हिंदी दैनिक की रूपायन मेग्जिन  में ख़ुशी जी के ''भूखे  पेट सोना पड़ता है ''आलेख को मेरे ब्लॉग कौशल से लिया गया  है ये मेरे लिए प्रसन्नता की बात है क्योंकि ख़ुशी जी के आलेख ने मेरे ब्लॉग का सम्मान बढाया है.ख़ुशी जी का मैं हार्दिक धन्यवाद् करती हूँ.
           
शालिनी कौशिक 

टिप्पणियाँ

Shikha Kaushik ने कहा…
ख़ुशी जी का सुझाव सरकार के लिए बहुत सही सुझाव hai
Jyoti Mishra ने कहा…
congratulations to khushi and to you !!

Problem pointed out here is the biggest impediment factor of India.
We have fantastic laws, but when it come to its execution there are numerous flaws !!
Er. सत्यम शिवम ने कहा…
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (04.06.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:-Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
स्पेशल काव्यमयी चर्चाः-“चाहत” (आरती झा)
Richa P Madhwani ने कहा…
http://shayaridays.blogspot.com
Kanoon to hamare yahan bas nam ke liye hain.... saarthak lekh ..
Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…
सचमुच यह चिंता का विषय है। सरकार को इसपर ध्‍यान देना चाहिए।

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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत?
ब्‍लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
Suman ने कहा…
sarthak lekh ke lie badhai .........

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