इन्हें कुछ मत दें.....
आजकल सडको पर जब हम जाते हैं तो झोले लटकाए टीका लगाये कभी गंदे कपड़ों में तो कभी साफ कपड़ों में कुछ आदमी और कुछ औरतें दिखाई दे जाती हैं.कभी कभी बच्चे भी दिखाई देते हैं और इन सभी का एक ही मकसद होता है जहाँ से भी मिले जैसे भी मिले पैसे बटोरना.हमारे घर के पास कुछ दुकाने हैं और दोपहर १२-०० बजे के करीब वहां ५-६ लोग आते हैं और हर दुकान में घुसते हैं और जो निश्चित कर रखे हैं १-१ रुपैया लेकर निकलते हैं.ऐसे जैसे शहरों में हफ्ता बंधा होता है ऐसे ही कस्बों में लगता है कि हर दिन का दुकानदारों पर कुछ जुर्माना बांध दिया गया है.अभी कल ही की बात है हम अपने डॉ.अंकल के क्लिनिक पर थे कि एक औरत वहां आई और उसने उनसे कुछ कहा भी नहीं और वे अपने मेज की दराज में कुछ ढूँढने लगे.थोड़ी देर में हमने देखा कि वे उसे दो रूपए देकर उससे एक रूपया ले रहे थे.ऐसा लगा कि ये उनकी क्लिनिक का भी रोज़ का ही प्रचलन हो गया है.
और हम और आप दोनों ही इसके लिए जिम्मेदार हैं क्योंकि जब हम एक को मांगने पर इस तरह पैसे देते हैं तो उसे देख दुसरे का भी हाथ अपनी और अनचाहे ही बढवा लेते हैं.हम अपने यहाँ घर से किसी भी मांगने वाले को पैसे नहीं देते हाँ अगर कोई भूखा दिखाई देता है तो उसे ज़रूर कुछ खाना दे देते हैं और और इसका ही ये परिणाम है कि हमारे घर इस तरह के लोगों का ताँता नहीं लगता जबकि पास पड़ोस में झोले लटकाए हठे-कट्टे दिखाई देते है रहते हैं .ये तो हम सभी जानते हैं कि ये लोग केवल मांगने के लिए ही नहीं घुमते हैं बल्कि इनका मकसद जैसे भी हो कुछ हासिल करना होता है और इस तरह हम इन्हें स्वयं योगदान दे रहे हैं.एक बार तो हमारे घर में एक औरत कुछ मांगने को घुसी मैंने उसे बाहर ही मना कर दिया और अन्दर आ गयी किन्तु हमारा घर ऐसे है कि उसका गेट कभी दिन में बंद नहीं होता तो वो मेरे अन्दर आने पर घर के और भी अन्दर जाने लगी मैंने उसे रोका तो वो भड़क कर बोली-कमबख्त टोक दिया ''भला मैं उसे अपने घर में जाने से रोक रही थी या उसके किसी प्लान में रोक लगा रही थी''.आज कल ऐसे घटनाएँ बढरही हैं और ये हमारी भलमनसाहत और लापरवाही ही है जो घरो में लूट डकैती की घटनाये बढ़ा रही है एक ओर तो हम इन लोगों को पैसे देकर समाज में भिखारी बढ़ा रहे हैं और दूसरी ओर इन्हें अपने घरों में घुसने के नए रस्ते दिखा रहे हैं .इधर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूरे परिवार के सफाए की घटनाये बढ़ रही हैं और इन सभी घटनाओ में हमारी लापरवाही भी एक महत्वपूर्ण तत्त्व है ऐसे में हमें अगर अपने घरों में ऐसी घटनाये रोकनी हैं और समाज को भिखारियों से बचाना है तो इन्हें पैसे दे पुण्य कमाने की प्रवर्ति पर रोक लगानी होगी.
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
हमारे समाज में लोग इस तरह के फ़ालतू लोगों को भीख देकर ऐसे कार्य को बढावा दे रहे है, हमारे यहां एक क्या कई भिखारी हर सप्ताह गली में आते है, लेकिन जिस दिन मेरा अवकाश होता है, तो मुझे देख कर दूर से वापस चले जाते है, मैं ऐसे लोगों को भगा देता हूं
Sahee kaha aapne....aisa karna bilkul galat hai.
sb ki bhalaaee ke liye kahee gaeeN
jaagruk aur sachet pankitiyaaN...
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कौमार्य के प्रमाण पत्र की ज़रूरत किसे है?
ब्लॉग समीक्षा का 17वाँ एपीसोड।
and if you don't give them than see their reactions..... its absurd they start saying bad things.
this is really shameful and it should be stopped.
हम और आप दोनों ही इसके लिए जिम्मेदार हैं|
एक ओर तो हम इन लोगों को पैसे देकर समाज में भिखारी बढ़ा रहे हैं और दूसरी ओर इन्हें अपने घरों में घुसने के नए रस्ते दिखा रहे हैं|
"दया धर्मं का मूल है" - एक वास्तविक भूखे प्यासे दुखिया को देख कर सम्रद्ध दयालुओं का द्रवित होना और पॉकेट में हाथ डाल कर पर्स निकालना अनुचित नहीं है लेकिन नियमित रूप से किसी व्यक्ति को , बिना उसकी ओर देखे और उसकी वास्तविक स्थिति जाने कुछ भी देना ,धर्म नही , अधर्म है ! इस प्रकार भिक्षाव्रत्ति को बढावा देना , अनुचित है, पाप कर्म है !
अमरनाथ 'मधुर '
मो ० 9457266975
एकदम सही बात,
साभार विवेक जैन vivj2000.blogspot.com