गरीबों और भिखारियों का देश भारत
भारत देश को आज़ाद हुए 63 साल बीत चुके हैं|इन 63 सालों में भारत ने तकनीकी,,आर्थिक.राजनीतिक एवं सांस्कृतिक आदि सभी शेत्रों में प्रगति के शिखर को छुआ| आज भारत का औद्योगिक ढांचा इतना मजबूत हो चुका है कि विदेशी कम्पनियां भारत में निवेश करने कि इच्छुक हैं| बावजूद इस प्रगति के भरत की सामाजिक स्थिति आज भी निम्न स्तर की है|आज भी भारत गरीबों और बिखारियों का देश है|आज भी भारत की 35 प्रतिशत जनसंख्या गरीबी रेखा से निचे जीवन बसर कर रही है|देश की 27 प्रतिशत जनसंख्या भिखारियों का जीवन बिता रही है|कहा जाये तो देश का उच्च वर्ग तो हर तरह की प्रगतिशील और विकासपरक सुख सुविधाएँ प्राप्त कर रहा है|मध्यम वर्ग को तो हाडतोड़ मेहनत कर दो वक्त की रोटी जुटानी पडती है|लेकिन देश का निम्न वर्ग इतना विकास होने के बाद भी गरीब है|यहाँ तक कि इस वर्ग को भीख मांग मांग कर अपना पेट भरना पड़ता है|न तो इनके लिए रोजगार की व्यवस्था है न ही शिक्षा की| देश में दिन प्रतिदिन इस तरह के लोगों की संख्या बढती जा रही है|जब कभी हम घर से बहर निकलते हैं तो सड़क पर,रेड सिग्नलों पर,बस स्टेंड पर,अस्पतालों में महिलाओं को,बच्चों को और वृद्ध आदमियों,औरतों को भीख मांगते डेक सकते हैं|कुछ लोग इन्हें दुत्कार देते हैं तो कुछ लोग तरस खाकर इन्हें एक दो रुपया दे देते हैं|यहाँ विशेष बात ये हैं कि इस भिखारी वर्ग को बनाने का जिम्मेवार कौन है|अगर सोचा जाये तो और कोई नही बल्कि हम लोग ही जेम्मेवार हैं इसके लिए|क्योंकि इस वर्ग में ज्यादातर वे बच्चें होते हैं जो बाप कि शराब पीने कि लत के चलते अपना और अपने माँ ,भाई ,बहन का पेट भरने के लिए भीख मांगते हैं|वे औरतें और उनके साथ वे बच्चियां भी हैं जिन्हें लोग लडकी पैदा होने पर या अपाहिज होने की सज़ा भिखारी बना कर देते हैं|इनमे वे बूढ़े माँ बाप भी होते हैं जिन्हें बेटे बहू बोझ समझके दर दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ देते हैं|कई बार तो ये भिखारी ज्यादा पाने की चाह में अपराध तक कर बैठते हैं| अक्सर लोग इनके बारे में सुझाव देते नजर आते हैं जैसे इन्हें भीख नही देनी चाहिए|बल्कि कुछ काम काज या मेहनत मजदूरी करने के लिए प्रेरित करना चाहिए| ठीक भी है|पर ऐसा तो केवल अच्छा खासा आदमी या औरत ही ऐसा कर सकती है|बाकी के लोग क्या करेंगे जो अपाहिज हैं या वे बच्चे क्या करेंगे जो छोटे होने के चलते मेहनत मजदूरी नही कर सकते|क्योंकि वे तो अपनी लाचारी और भूख से बिलखते पेट के कारण भीख मांगने को मजबूर होते हैं|शौक किसे होता है भीख मांगने का|
सही कहा है किसी ने इंसान ही इंसान का दुश्मन होता है|इनके अपने ही जिम्मेवार है इनकी इस दयनीय स्थिति के लिए|श्रम आणि चाहिए उन लोगों को जो अपनों को बोझ समझते हैं|जो लडकी का पैदा होना एक अभिशाप समझते हैं|श्रम आणि चाहिए उन माँ बाप को जो बच्चें पैदा तो कर देते हैं लेकिन उन्हें पाल नही सकते|उनका पेट नही भर सकते|यहाँ सरकार को भी जिम्मेवार ठहराया जा सकता है|देश में भिक्षावृति पर रोक लगाने के लिए सरकार ने भिक्षावृति निरोधक अधिनियम बनाया हुआ है|पर कोई फायदा नही|क्योंकि सरकार कानून बना तो देती है पर कानून का लागू होना या न होना अधिकारियों के हाथ में होता है|ये भरतीय कानूनों की पहचान है|बहरहाल सरकार का क्या वह तो सिर्फ कानून बनाकर इन्हें कुछ राहत प्रदान कर सकती है|नैतिक जिम्मेवारी तो इन भीख मांगने वालों के अपनों की है|वैसे आज के समाज में रिश्ते नाते,अपनापन नाम की कोई चीज नही रह गयी है|पर सुधार करने की एक कोशिश की जा सकती है|
खुशबू(इन्द्री)करनाल
खुशबू जी ने ये आलेख मुझे इ-मेल से १० जून को भेजा था जिसे मैं अपने इ-मेल में परेशानी को लेकर प्रकाशित करने में देरी कर गयी.आप सभी के विचारों का ख़ुशी जी को निम्न इ-मेल पर इंतजार रहेगा .
media1602@gmail.com
टिप्पणियाँ
सौ प्रतिशत सहमत हूँ ---
आपके द्वारा प्रस्तुत विचार से ||