महंगाई तो मार ही गयी पर हमारी महत्वाकांक्षा का क्या....
महंगाई तो मार ही गयी पर हमारी महत्वाकांक्षा का क्या. आप सोच रहे होंगे की मैं फिर उलटी बात करने बैठ गयी आज सभी समाचार पत्रों में गैस ,डीजल और केरोसिन के दाम बढ़ने की सूचना प्रमुखता से प्रकशित है .सरकार की जिम्मेदारी जनता जनार्दन के बजट की बेहतरी देखना है ये मैं मानती हूँ और यह भी मानती हूँ की सरकार इस कार्य में पूर्णतया विफल रही है किन्तु जहाँ तक सरकार की बात है उसे पूरी जनता को देखना होता है और एक स्थिति एक के लिए अच्छी तो एक के लिए बुरी भी हो सकती है किन्तु हम हैं जिन्हें केवल स्वयं को और अपने परिवार को देखना होता है और हम यह काम भी नहीं कर पाते.
आज जो यह महंगाई की स्थिति है इसके कहीं न कहीं हम भी जिम्मेदार हैं .मेरी इस सोच के पीछे जो वजह है वह यह है की मैं देखती हूँ कि हमारे क्षेत्र में जहाँ पैदल भी बहुत से कार्य किये जा सकते हैं लोग यदि सुबह को दूध लेने भी जाते हैं तो मोटर सायकिल पर बैठ कर जाते हैं जबकि वे यदि सही ढंग से कार्य करें तो मोर्निंग वाक के साथ दूध लाकर अपनी सेहत भी बना सकते हैं.सिर्फ यही नहीं कितने ही लोग ऐसे हैं जो सारे दिन अपने स्कूटर .कार को बेवजह दौडाए फिरते हैं .क्या इस तरह हम पेट्रोल का खर्चा नहीं बढ़ा रहे और यह हमारी आने वाली पीढ़ी को भुगतना होगा जब उसे वापस साईकिल और बैलगाड़ी पर सवार होना होगा.
ये तो हुई छोटी जगह की बात अब यदि बड़े शहरों की बात करें तो वहां भी लोगों के ऑफिस एक तरफ होने के बावजूद वे सभी अलग अलग गाड़ी से जाते हैं और इस तरह पेट्रोल का खर्चा भी बढ़ता है और सड़कों पर वाहनों की आवाजाही भी जो आज के समय में दुर्घटनाओं का मुख्य कारण है.
अब आते है गैस के मुद्दे पर जबसे गाड़ियाँ गैस से चलने लगी हैं लोगों का सिलेंडर घर में खर्च होने के साथ साथ गाड़ी में भी लगने लगा है और गैस की आपूर्ति पर भी इसका बहुत फर्क पड़ा है.अब बहुत सी बार घर में चुल्हा जलने के लिए गैस मिलना मुश्किल हो गया है और सरकार के द्वारा गाड़ी के लिए अलग सिलेंडर उपलब्ध करने के बजूद घरेलू गैस ही इस कार्य में इस्तेमाल हो रही है.क्योंकि गाड़ी के लिए मिलने वाले सिलेंडर घरेलू गैस के मुकाबले ज्यादा महंगे होते हैं.
हम हर कार्य में अपनी जिम्मेदारी से ये कहकर की ये सब हमारी जिम्मेदारी नहीं है अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते क्योंकि हम भी इस सब के लिए उत्तरदायी हैं .आजकल ये स्थिति आ चुकी है की बच्चा पैदा बाद में होता है उसके हाथ में वाहन पहले आ जाता है.व्यापार आरम्भ बाद में होता है और गोदाम में भण्डारण पहले आरम्भ हो जाता है क्या ये हमारी जिम्मेदारी नहीं है कि हम भी अपनी ऐसी आदतों पर अंकुश लगायें और देश में समस्याओं से निबटने में सरकार को सहयोग करें.
शालिनी कौशिक
शालिनी कौशिक
टिप्पणियाँ
वास्तव में डीजल-पेट्रोल के बिना केवल पैदल या साइकिल से हम अपने छोटे-छोटे ज़रूरी काम आसानी से निपटा सकते हैं, लेकिन समस्या यह है कि फैशन के इस युग में अंधानुकरण की बीमारी से आज हर कोई पीड़ित है.इसके साथ ही यह भी सच है कि डीजल-पेट्रोल की कीमतें बढ़ने पर आम-उपभोक्ता वस्तुओं की परिवहन लागत भी बढ़ जाती ह,ऐसे में महंगाई का बढ़ना स्वाभाविक है. लोगों की इस बात में भी दम है कि महंगाई का सबसे बड़ा कारण सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार भी है.
महंगाई पर चुप करें, दुष्कर्मों को भोग ||
mere blog se bhi update rahe yaha se aaye blog meaur blog me raaay dene ke liye dhanybaad
===========
मारा गया किसान फिर, पीटा गया मंजूर।
जल-डीजल दोनों हुए, आम-जनों से दूर॥
स्वप्न दिखाए स्वर्ग के, दिया नर्क में ठेल।
मंहगाई की मार के, क्या सरकारी खेल?
अमरीका - ईराक का, हुआ कभी था युद्ध।
उसके काले असर से, जग विकास अवरुद्ध॥
"samrat bundelkhand"
बहुत सुंदर विचार के साथ लिखा गया लेख
मगर दाल की कीमत ४० से ९० रूपये हुए है...क्या खपत दोगुनी हो गयी या उत्पादन घट गया..
चलिए माना सूखे से फसल ख़राब हो गयी मगर अंडे की कीमत ३ गुनी हुए है क्या शाकाहारी अंडाहारी हो गए या मुरगियों ने अंडे देने बंद कर दिए?
कहीं न कहीं सरकारी विफलता भी है...
धन्यवाद और बधाई सुन्दर लेख पर,