बहाने बेटे की सुध ले हिन्द की माना अब डर के

तशददुद करने चले हैं ये मुखालिफ पर कमर कस के ,
चलाते तीर ज़हरीले शहद को मुंह में ये भर के .
...............................................................................
क़त्ल से बेगुनाहों के भरे नापाक जो दामन ,
चुभाना चाह रहे नश्तर वफ़ादारी में चिढ़कर के .
.........................................
वतन के कायदे को ही सीखा जो अदब देना ,
दिखा खुद की ये गद्दारी उसे कायर बताकर के .
....................................................................
मिली है कुदरत से जिसको मुहब्बत इस ज़माने की ,
उसे ये छीनना चाहे महज ऊँगली उठाकर के .
...............................
सजाकर महफ़िलें अपनी बरसते हैं मुखालिफ पर ,
मर्ज़ सदियों पुराना ये चढ़ा है आज सिर कर के .
......................................
नहीं कुछ काम करने को नहीं कुछ बात कहने को ,
हमेशा काँधे दूजे के चलाये गोली चढ़ कर के .
...................................
मांगते फिर रहे पैसा मांगते फिर रहे लोहा ,
ख्वाब क्या देंगे ये हमको यूँ खाली हाथ रखकर के .
........................................
विदेशी कह किया बाहर जिसे मौका-परस्तों ने ,
बहाने बेटे की सुध ले हिन्द की माना अब डर के .
........................................
हिन्द ने झेला मजहब के नाम पर दहशत और दंगा ,
नहीं फिर देगा वो अवसर देखा एक बार देकर के .
.............................
लगाना तोहमत ही इनकी बनी एक आम फितरत है ,
न दिखता कुर्सी से आगे न उससे पीछे जाकर के .
.............................................................
''शालिनी'' मुल्क को अपने ऐसे हाथों में कैसे दे ,
चले जो राज करने को मुखौटे मुख पे धर कर के .
................
शालिनी कौशिक
[कौशल]

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी माँ - मेरा सर्वस्व

हरियाली तीज -झूला झूलने की परंपरा पुनर्जीवित हो.

योगी आदित्यनाथ जी कैराना में स्थापित करें जनपद न्यायालय शामली