..कहीं नारे की तरह सत्ता भी ......

''यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है ,
चलो यहाँ से कहीं दूर ..........''
पंक्तियाँ दूरदर्शन के एंकर अश्विनी मिश्रा अपने एक कार्यक्रम के सम्बन्ध में रहे थे किन्तु आज सियासी परिस्थितियों ने इन पंक्तियों से ध्यान एकाएक भाजपा की वर्त्तमान कार्यप्रणाली की ओर मोड़ दिया जिसमे दरख्त समान हमारे बुज़ुर्ग नेताओं के साथ यही व्यवहार अपनाया जा रहा है.पहले जोशी ,टंडन से उनकी सीट छीन ली गयी ,फिर आडवाणी को भोपाल /गांधी नगर में उलझाया गया और अब जसवंत सिंह का तो टिकट ही काट दिया गया और अभिनेता परेश रावल के लिए आडवाणी के करीबी हरेन पाठक का टिकट कट दिया गया ,पार्टी के प्रति समर्पित ये व्यक्तित्व आज अपमान के दौर से गुज़र रहे हैं और वह भी मात्र उन नेताओं के कारण जिनका पार्टी के राष्ट्रीय स्वरुप में कोई योगदान नहीं .
नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री हैं और गुजरात को विकास की राह का घोड़ा बताते हैं ये अच्छी बात है कि देश का एक राज्य प्रगति की राह पर सरपट दौड़ रहा है किन्तु अभी तक २८ राज्य वाले इस देश में एक पार्टी का राष्ट्रीय व्यक्तित्व तब बनता है जब कम से कम ४ राज्यों में पार्टी अपना अस्तित्व बनाये हो और इसीलिए ऐसे में गुजरात का महत्व मात्र एक राज्य का है और इस तरह नरेंद्र मोदी का महत्व भी मात्र एक राज्य के मुख्य़मंत्री का ही है और यह भाजपा में महत्वाकांक्षाओं के पर्वतों की अधिकता ही कही जायेगी कि राष्ट्रीय राजनीति में लगे कर्मठ ,समर्पित नेता एक और धरे रह गए और एक राज्य की राजनीति करने वाला अपनी पहुँच बनाकर और मीडिया से अपनी हवा बनवाकर ,सोशल मीडिया में अपने फेक अकॉउंट बनाकर अपनी लहर दिखाता है और इस प्रभाव में सत्ता पाने की ललक में फंसे भाजपाइयों को फंसकर अपने को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करा लेता है और धीरे धीरे पार्टी की बागडोर ही अपने हाथ में ले लेता है और परिणाम सबके सामने है पार्टी के बड़े से बड़े नेता की गर्दन अब मोदी के हाथ में है और भाजपाइयों के होशोहवास भी .इस सबका ही परिणाम है कि जसवंत सिंह जी जैसे पूर्ण रूप से समर्पित नेता निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में परचा भर रहे हैं -

Jaswant singh slams bjp

भाजपा को तगड़ा झटका, जसवंत स‌िंह ने भरा न‌िर्दलीय पर्चा


और जेटली जैसे ए सी कमरे के नेता उन्हें ना स्वीकारने की नसीहत दे रहे हैं
यही नहीं आज भाजपा में मोदी लहर को लेकर अफरातफरी का माहौल है .स्वयं पार्टी के लिए पिता सदृश आर.एस.एस.संचालक मोहन भगवत नमो नमो के उच्चारण को बंद करने का आदेश दे चुके हैं .पार्टी की वरिष्ठ नेता सुषमा स्वराज पार्टी की कार्यप्रणाली पर नाराजगी जाता चुकी हैं और अब द्वारकापीठ के जगद गुरु शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती ने''हर हर मोदी ''नारे पर आपति जताते हुए इसे भगवान शिव का अपमान बताया है और ये सब ना केवल हमारे संतों की विचारधारा है अपितु हमारी स्वयं की भी यही सोच है कि मोदी को एक भगवान की तरह दिखाने की कोशिश की जा रही है जबकि मोदी एक सामान्य राजनेता की तरह राजनीति ही तो खेल रहे हैं और अभी क्योंकि उनकी पहुँच मात्र अपनी पार्टी तक है इसलिए अभी वे केवल उसी के साथ अपनी कूटनीतिक चालें चल रहे हैं पहले तो उन्होंने अपनी पार्टी के समर्पित नेताओं का मखोल उड़ा कर उनसे सीट छीनी और अब उनके निर्देश पर पार्टी के लिए निरंतर लगे नेताओं को तो टिकट से वंचित किया जा रहा है और सत्ता की ओर तेज़ी से बढ़ती प्रतीत होने वाली भाजपा की गाड़ी में सवार होने के लिए अपने दलों को छोड़कर भागे आ रहे दलबदलुओं का तहेदिल से स्वागत किया जा रहा है और टिकट का तोहफा देकर नवाज़ा जा रहा है जिससे पार्टी में निरंतर असंतोष बढ़ता जा रहा है .
भाजपा की ऐसी परिस्थितियां उसकी राजनीतिक अपरिपक्वता को ही ज़ाहिर करती हैं .इंडिया शाइनिंग की तरह मोदी लहर भी आज पार्टी को भले ही ऊंचाई की ओर बढाती दिख रही हो किन्तु ये सी-सा झूले की तरह है और इसमें पलड़ा पलटते देर नहीं लगती .ये सब सोचकर भाजपा को आज ध्यान देना ही होगा .दलबदलुओं के कारण अपनों की उपेक्षा और स्वयं जसवंत सिंह का ये बयान कि पार्टी में अहंकार का अहसास हो रहा है और अहंकार पतन का कारण होता है ध्यान में रखते हुए बड़ों को ना स्वीकारने की नसीहत देने से बेहतर है कि बाहर से आये हुए दलबदलुओं को पहले कम से कम पञ्च साल पार्टी के सेवा करने की नसीहत दी जाये क्योंकि इन खोखले बादलों से बेहतर पार्टी के लिए इन्हीं दरख्तों के साये हैं जिनमे रहकर भले ही धुप लगे पर वह पार्टी की सेहत को दुरुस्त करने वाली ही होगी .पार्टी को ये समझना ही होगा कि ये बुजुर्ग और समर्पित नेता ही पार्टी के रथ के वे पहिये हैं जो इसके रथ को सत्ता की सवारी करा सकते हैं .आज पार्टी जिन चंद उल्लू की सवारी करने वाले नेताओं पर आश्रित है उनकी चलते रहने पर तो यही सम्भव है कि अभी पार्टी का नारा ''अबकी बार मोदी सरकार ''बदलकर ''अबकी बार भाजपा सरकार ''करना पड़ा आगे कहीं सत्ता को एक दुःस्वप्न ही सोचकर छोड़ना न पड़ जाये .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (25-03-2014) को "स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ" (चर्चा मंच-1562) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
खुदा जाने आज की अश्थिर राजनीति की बातें !

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