जलजले इस ज़माने में फटे बिन रह नहीं सकते।


अल्फ़ाज़ दिल की बेबसी को कह नहीं सकते ,
आंसू छिपकर आँखों में रह नहीं सकते।
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गिरे हैं दिल पे आकर जब कभी हालात के पत्थर ,
तसल्ली प्यार के सौ बोल भी दे तब नहीं सकते।
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नहीं लायक तो मानेंगें सभी इलज़ाम हम तेरे ,
कभी काबिल तुम्हारे झूठ को यूँ सह नहीं सकते।
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तरक्की रोककर मेरी फतह पर अपनी न खुश हो ,
किसी दरिया को चट्टानें बांध यूँ रख नहीं सकते।
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रहेगी कब तक दुनिया में दबाकर खुद को ''शालिनी '',
जलजले इस ज़माने में फटे बिन रह नहीं सकते।

शालिनी कौशिक
    [कौशल ]

टिप्पणियाँ

'दरिया को चट्टानें बांध यूँ रख नहीं सकते'
- सौ बात की एक बात कह दी है शालिनी जी!
Digvijay Agrawal ने कहा…
आपकी लिखी रचना बुधवार 16 अप्रेल 2014 को लिंक की जाएगी...............
http://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

virendra sharma ने कहा…
बेहद सशक्त चित्र को शब्दों का पैरहन देती भावपूर्ण रचना।
गिरे हैं दिल पे आकर जब कभी हालात के पत्थर ,
तसल्ली प्यार के सौ बोल भी दे तब नहीं सकते।
बहुत खूब ... लाजवाब शेर है ...

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