गुड़गुड़ वहीँ के हुक्के की कायम है रह सकी .


दहलीज़ वही दुनियावी फितरत से बच सकी , 
तरबियत तहज़ीब की जिस दर पे मिल सकी .
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होता तहेदिल से जहाँ लिहाज़ बड़ों का ,
गुड़गुड़ वहीँ के हुक्के की कायम है रह सकी .
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तल्खी जहाँ दिल में बसी अपनों से बेरुखी ,
नज़दीकी उन घरों में सरहद न बन सकी .
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जिस छत के नीचे परवाह अपनों की हो रही ,
आपस की मुहब्बत वहीँ पे ज़िंदा रह सकी .
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जिस घर की ''शालिनी ''की रूहों में हो फरेब ,
ऐसी दीवार पे कभी खुशियां न पल सकी .
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शालिनी कौशिक 
    [कौशल ]

टिप्पणियाँ

बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (23-04-2014) को जय माता दी बोल, हृदय नहिं हर्ष समाता; चर्चा मंच 1591 में अद्यतन लिंक पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Dr.R.Ramkumar ने कहा…
जिस छत के नीचे परवाह अपनों की हो रही ,
आपस की मुहब्बत वहीँ पे ज़िंदा रह सकी .
............................................................
जिस घर की ''शालिनी ''की रूहों में हो फरेब ,
ऐसी दीवार पे कभी खुशियां न पल सकी .


sunder. ati sunder.
जिस छत के नीचे परवाह अपनों की हो रही ,
आपस की मुहब्बत वहीँ पे ज़िंदा रह सकी ..
सच कहा है ... जहां अपनों को प्रेम मिले, सब को प्रेम मिले मुहबत वहाँ आबाद रहती है ...
Vocal Baba ने कहा…
बहुत ख़ूब। हर शेर पर दाद।
Anita ने कहा…
बहुत उम्दा गजल..

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