मोदी नाग बन बैठे हमें काट खाने को

मोदी नाग बन बैठे हमें काट खाने को .

जिन्हें हमने गले का हार समझा था गले को सजाने को ,
वही नाग बन बैठे हैं हमें काट खाने को .
''पटेल होते पहले पी.एम्. तो देश की तस्वीर कुछ और होती ''मोदी के ये वचन भारतवर्ष में वीरता ,शहादत और जनता की सरकार को नकारने की जो राष्ट्रद्रोही छवि होनी चाहिए को प्रत्यक्ष करने को पर्याप्त हैं .सर्वप्रथम तो मोदी का प्रधानमंत्री के समक्ष अशोभनीय आचरण उस पर ट्विटर का इस्तेमाल कर सरेआम उनकी अवमानना का प्रयास और लाल किले की प्रतिकृति पर खड़े हो कर स्वयं को भारतीय गणतंत्र का प्रधानमंत्री दिखाने का प्रयास न केवल संविधान द्वारा सृजित राष्ट्र्व्यवस्था का अपमान है बल्कि एक ऐसा कुत्सित कार्य है जिसे भारत में राष्ट्रद्रोह घोषित किया जाना चाहिए अन्यथा न केवल मोदी बल्कि उनकी ही तरह कोई भी सड़क चलता सरकार की बराबरी करने लगेगा और इस तरह भारत राष्ट्र की छवि को सारे विश्व में धक्का पहुंचेगा .
आज जब न पटेल हैं और न नेहरू तब इस तरह की बातें उछालकर मोदी जनभावनाओं के साथ खिलवाड़ के लिए प्रयासरत हैं और यह सोचकर कि ''बदनाम भी हुए तो क्या ,नाम तो हुआ ''अनाप-शनाप कुछ भी बोलने में लगे हैं .
भारत के विकास और उत्थान में नेहरू जी के योगदान को नकारना बिलकुल वैसे ही है जैसे अपने जीवन में सूरज के अस्तित्व को नकारना और उनका जनता के दिलों में स्थान ही ऐसा है जिसे मोदी जैसे नेता भले ही लाख सर पटके करोड़ों रूपए खर्चे .पर पा नहीं सकते और ऐसे ही सरदार पटेल का भी भारतीय जनता ह्रदय की गहराइयों से सम्मान करती है और देश में उनके योगदान के आगे नतमस्तक है .
चाय बेचने से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री बनने तक का सफ़र तय करने वाले मोदी आज गुजरात से निकलकर भारत की जनता को बेवकूफ बनाने निकले हैं और अंग्रेजों की नीति ''बांटों और राज करो ''का पालन करते हुए भारतीय जनता की पटेल व् नेहरू के प्रति भावनाओं को बांटकर भारतीय सत्ता के लिए अपनी राह बनाने में जूट हैं ,भूल गए हैं कि नेहरू जब प्रभावी थे तो पटेल भी कोई अस्तित्व हीं नहीं थे और नेहरू के प्रधानमंत्री बनने में जिसका सबसे बड़ा हाथ था वे भी गुजरात के ही थे ,जिन्हें नेहरू में अपना ही अक्स दिखाई दिया था और जिन्होंने कहा था -
''जवाहर लाल मेरा उत्तराधिकारी होगा .उसका कहना है कि मेरी जबान नहीं समझता और वह ऐसी भाषा बोलता है ,जो मेरे लिए विदेशी है ,यह बात ठीक भी हो सकती है लेकिन दो दिलों के मिलाप में भाषा बाधा नहीं बन सकती .मैं इतना जानता हूँ कि जब मैं नहीं रहूँगा तो वह मेरी भाषा बोलेगा .''
ये शब्द राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के थे जिन्हें मोदी शायद अपने गुजरात से पहले जोड़कर देख सकेंगे इसलिए उनके शब्दों का तो उनके लिए महत्व होना ही चाहिए और ऐसा नहीं है कि नेहरू को पी.एम्.बनाकर देश ने उनपर कोई एहसान किया हो बल्कि नेहरू वह विभूति थे जो देश में ऐसे पद स्वीकार कर स्वयं को बंधन में बांधते हैं .नेहरु का योगदान इस देश में इतना है कि मोदी की उस बारे में सोचते सोचते भी शायद सारी उम्र कम पड़ जाये और इसलिए वे उसी तरह त्याज्य हैं जैसे सत्य के आगे असत्य .
लाहौर में पवित्र सलिला रावी के पुनीत तट पर १९२९ में अखिल भारतीय कॉंग्रेस के अधिवेशन में पंडित नेहरू को सर्वसम्मति से प्रथम बार अध्यक्ष बनाया गया और उन्हीं की अध्यक्षता में भारतवर्ष की स्वतंत्रता का प्रस्ताव पास हुआ [और यह सब तब जब देश स्वतंत्र कब होगा पता नहीं था ,कोई पद मिलेगा ,ऐसी कोई महत्वाकांक्षा नहीं थी .]
अवध के किसानों के लिए हुए आंदोलन में वे पहली बार जेल गए .नमक सत्याग्रह में जेल गए .उत्तर प्रदेश में किसान आंदोलन में जेल गए ६ महीने की सजा मिली .कलकत्ता में अंग्रेजी राज के विरुद्ध भाषण देने पर फिर जेल यात्रा .सन १९३९ में द्वित्य विश्व युद्ध में भारत को सम्मिलित राष्ट्र घोषित किये जेन पर नेहरू द्वारा कटु आलोचना किये जाने पर जनता का उनसे स्वर मिलाना अंग्रेजों को रास नहीं आया और उन्होंने उन्हें पुनः चार वर्ष का कारावास का दंड दे दिया ,फिर ४२ का आंदोलन ,१५ जून को नेहरू छोड़े गए यह उनकी नौवीं जेल यात्रा थी आते ही उन्होंने आज़ाद हिन्द फ़ौज के सिपाहियों को छुड़ाने का महान प्रयत्न किया ,सरकार को उन्हें छोड़ना पड़ा क्योंकि नेहरू और जनता में कोई भेद नहीं था .अंग्रेजों ने घबराकर २ सितम्बर १९४६ को भारत में एक अंतरिम सरकार की स्थापना की जिसमे पंडित नेहरू को प्रधानमंत्री नियुक्त किया गया [और वह भी तब जबकि अंग्रेजों का शासन था और अंग्रेजों को नेहरू भारतीय जनता के सशक्त प्रतिनिधि दिखाई देते थे और भारतीय जनता किसी भी कीमत पर ब्रिटिश अंकुश के अधीन नहीं रहना चाहती थी ,तब नेहरू ही वे सशक्त प्रतिनिधि थे जिन्हें जनता ने अपना माना और और अपने सिर आँखों पर बैठाया .]
और यह भी कि जनता उन्हें प्यार करती थी उनका सम्मान करती थी क्योंकि वे कहा करते थे -
''मुझे इसकी कतई चिंता नहीं है कि मेरे बाद दुसरे लोग मेरे बारे में क्या सोचेंगे .मेरे लिए तो बस इतना ही काफी है कि मैंने अपने को अपनी ताकत और क्षमता को भारत की सेवा में खपा दिया .''
और भारतीय जनता ने ये न केवल उनके विचारों में बल्कि उनके कार्यों में भी महसूस किया .देश के लिए उन्होंने अपना न केवल आनंद भवन दिया बल्कि अपने स्वास्थ्य को भी जनकार्यों में ही समर्पित कर दिया स्वयं मात्र दो घंटे सोकर जनता के चैन से सोने के लिए अवसर प्रदान करने के लिए भरसक चेष्टाएँ की और उनमे सफल भी हुए .नेहरू वे नहीं थे जो आज के नेता हैं वे सुसम्पन्न होते हुए जनता के दुःख दर्द को महसूस कर पाये .प्रसिद्द फ़िल्मी गीत ''दे दी हमें आज़ादी ....में उनकी सेवा के बारे में संक्षेप में ही विस्तार से उनके दिल को खोल कर रखा गया है -
''जब जब तेरा बिगुल बजा .....
फूलों की सेज़ छोड़कर दौड़े जवाहर लाल ''
अपने प्राण त्यागते हुए भी नेहरू के ह्रदय में हिंदुस्तान विराजमान था .उन्होंने २७ मई १९६४ को २ बजे कहा था -
''अगर मेरे बाद कुछ लोग मेरे बारे में सोचें तो मैं चाहूंगा कि वे कहें -वह एक ऐसा आदमी था ,जो अपने पूरे दिल और दिमाग से हिन्दुस्तानियों से मुहब्बत करता था और हिंदुस्तानी भी उसकी कमियों को भुलाकर उसको बेहद अनहद मुहब्बत करते थे .''
उनके महा प्रयाण के पश्चात् उनकी इच्छाओं के अनुरूप उनकी अस्थियां उत्तर में हिमालय से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक बिखेर दी गयी .कवि भारत भूषण ने कहा -
''सिमटे तो ऐसे सिमटे तुम ,बंधे गुलाब की पाँखुरियों से ,
बिखरे तो ऐसे बिखरे तुम ,खेत खेत की फसल हो गए .''
इस गुलाब को ,खेत खेत की फसल के अस्तित्व को नकार आज मोदी पुनः भारत -पाक बंटवारे का वीभत्स दृश्य उपस्थित करने में जुटे हैं ताकि किसी भी तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी हासिल कर सके .ये श्रीराम के अनुयायी हैं उन्हीं श्रीराम के जो दूसरे की तपस्या से अर्जित किसी सीधी को लेना चोरी मानते हैं .सरदार पटेल की विरासत के बहाने उनके प्रति लोगों का उनके प्रति जो प्यार व् सम्मान है उसे लेने में जुटे मोदी क्या आज किसी चोर से अलग कहे जायेंगे ?आज जो वे कर रहे हैं वह देश को साफ तौर पर बाँटने का प्रयास है और इसी का परिणाम है जो आज देश में कभी मुजफ्फर नगर में दंगे भड़क रहे हैं तो कभी बिहार में आतंकवादी हमले हो रहे हैं प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी देश की विभूतियों के प्रति गलत शब्दों के इस्तेमाल से भी नहीं चूक रहे हैं और इस तरह दिखा रहे हैं अपनी ललक जो उन्हें अपने लालच की पूर्ति के लिए किसी भी हद तक गिरने को मजबूर करती है .उनके बारे में तो श्याम बिहारी गुप्त के शब्दों में बस यही कह सकते हैं -
''आचरण ने शब्दों के अर्थ बदल दिए ,
फिर ऐसा हुआ कि अँधेरा बाँटने लगे दिए .''
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

मोदी में अहंकार साफ़ दिखाई पड़ता है,,,

RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

मेरी माँ - मेरा सर्वस्व

बेटी का जीवन बचाने में सरकार और कानून दोनों असफल

नसीब सभ्रवाल से प्रेरणा लें भारत से पलायन करने वाले