हवस में अंधे नारी और पुरुष:एक ही रथ के सवार

हवस में अंधे नारी और पुरुष:एक ही रथ के सवार

''रामायण ''आजकल देखा जाना परमावश्यक और परमप्रिय उद्योग है .जहा एक ओर रामायण देखने पर हमारा राम के मर्यादा पुरषोत्तम चरित्र से परिचय होता है ,सीता समान पति की छाया बनकर जीवन व्यतीत करने में गौरव का अनुभव करने वाली आदर्श नारी से नारी जीवन को सही स्वरुप में जीने की प्रेरणा मिलती है वहीँ एक बात और दृष्टिगोचर होती है और वह नारी और पुरुष दोनों को एक श्रेणी में ला खड़ा कर देती है और वह है ''हवस ''


सूपर्णखा और रावण ये दोनों वे नारी और नर हैं जिनकी हवस ने सम्पूर्ण लंका का विनाश कर दिया और एक लाख पूत सवा लाख नाती वाले रावण के कुल में कोई रोने वाला भी नहीं छोड़ा .
राम और लक्ष्मण के द्वारा अपने प्रणय प्रस्ताव के ठुकराने पर सूपर्णखा ने पहले खर-दूषण का विनाश कराया और बाद में लंका पहुंचकर अपने भाई रावण की हवस की आग जगाकर सम्पूर्ण लंका का .
और वहीँ रावण जो कि सब कुछ जानते हुए भी एक एक कर अपने सभी परिजनों की मृत्यु का कारण बनता गया किन्तु सीता का मोह नहीं छोड़ पाया .
यही वह कलुषित भावना है जो दोनों को एक ही मंच पर खड़ा कर देती है और दिखा देती है कि नारी और नर किसी भी हद तक जा सकते हैं और इन्हें बराबरी के दर्जे के लिए किसी संघर्ष की आवश्यकता नहीं है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

Ramakant Singh ने कहा…
काल गाथा सुन्दर नहीं बेहतरीन
रविकर ने कहा…
डंका बाजे हवश का, बढे-चढ़े नर-नारि |
देह हुई परवश अगर, होय सबल कुविचार |

होय सबल कुविचार, बुद्धि पर लगते ताले |
घटित होय व्यभिचारि, मिटाते घर मतवाले |

सूर्पनखा की चाह, दाह देती कुल-लंका |
संयम नियम सलाह, धर्म का बाजे डंका ||
HAKEEM YUNUS KHAN ने कहा…
नारी और नर किसी भी हद तक जा सकते हैं .
बात तो ठीक है .. हवस ये नहीं देखती की नारी है या पुरुष ... दोनों को सामान आती है और बरबाद कर जाती है ...
Unknown ने कहा…
बढ़िया प्रस्तुति |

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