ऐसी आस्था किस काम की

ऐसी आस्था किस काम की
MP govt recommended the State Election Commission to suspend Datia's Collector, Superintendent of Police, Sub Divisional Magistrate, Sub Divisional Officer of Police and entire staff of Sevdha police station, over stampede near Ratangarh temple.
फिर से एक बार आस्था पर असावधानी भारी पड़ी और भगवान के दर पर पहुंचकर भक्तों को मौत के मुहं में सामना पड़ा .यूँ तो भगवान के दर पर मौत बहुत पुण्यों का फल मानी जाती है किन्तु ये केवल ऊपरी बाते हैं अंदुरनी बात ये है कि इस तरह से अनायास मृत्यु की गोद में समाना मृतक के परिजनों को शोक के अथाह सागर में डुबो देता है .प्रशासन की लापरवाही सभी को दिखती है किन्तु ये क्या नहीं दिखती जो वास्तव में दिखनी चाहिए .....
हर जगह श्रृद्धालुओं की इतनी अधिक संख्या ............इस पर रोक न तो जनता स्वयं लगाती है और न ही इनपर रोक किसी और द्वारा लगायी जा सकती है क्योंकि ये आस्था का विषय है और जो भी ऐसे में रोक लगता है उसे अनर्गल आलोचना भी झेलनी होती है और वोटो का अकाल भी .फिर सबसे बड़ा हथियार तो इन्हें हमारे संविधान ने ही दे दिया है देश में कहीं भी भ्रमण की स्वतंत्रता .
आज आवश्यकता इस बात कि है कि ऐसी धार्मिक आस्थाओं पर प्रशासनिक अंकुश लगाया जाये क्योंकि ये न केवल धर्म का मजाक उड़ा रही हैं बल्कि धर्म के नाम पर प्रशासन के लिए नई नई मुश्किलें खड़ी कर रही हैं आज ऐसी ही आस्थाएं उच्चतम न्यायालय को भी ऐसे मामलों में दखल देने को विवश कर रही हैं जिनमे उसके समय के बर्बाद करने का खामियाजा हम सभी को भुगतना पड़ रहा है .गंगा -यमुना के जल को स्वच्छ किये जाने के लिए आज उच्चतम न्यायालय निर्देश दे रहा है जबकि ये हम सभी को दिखता है कि हम किस कदर अन्धविश्वास के अधीन हों अपनी पवित्र नदियों को गंदगी के हवाले कर रहे हैं .
आज जहाँ देखो श्रद्धालुओं की भीड़ है और ये भीड़ अब अंकुश के दायरे में लानी ही होगी तभी ऐसी घटनाओं पर रोक लगायी जा सकेगी और इसके लिए सभी राजनीतिक दलों को सच्चे मन से एकजुट हो कार्यवाही करनी होगी .भारत की बढती जनसँख्या और उसकी भक्ति आज इस तरह की बंदिश के अधीन किये जाने पर ही ऐसी भगदड़ से बच पायेगी .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]

टिप्पणियाँ

आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार (15-10-2013) "रावण जिंदा रह गया..!" (मंगलवासरीय चर्चाःअंक1399) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ऐसी घटनाए प्रसासनिक लापरवाही से होती!

RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.
धार्मिक उन्मादता से मुक्ति पाने केलिए चैनलों पर धार्मिक प्रचार बंद करना पड़ेगा .लोग पहले ऐसे उन्माद नहीं थे .इतनी भीढ़ धर्म स्थलों में नहीं होती थी !
अभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
vijai Rajbali Mathur ने कहा…
रतनगढ़,कुम्भ सरीखे हादसे न तो 'आस्था' का प्रश्न हैं न ही 'धर्म' का ये सब घोर 'मूर्खता' का परिचायक हैं। 'ढोंग-पाखंड-आडंबर' का प्रचार व्यापारी वर्ग अपने निजी 'आर्थिक हित' में अधर्म के दलालों-पुरोहितों-ब्राह्मणों,मौलवियों,पादरियों आदि-आदि के द्वारा धर्म बता कर करवाते हैं। जब पढे-लिखे लोग ही इस भंवर जाल में फँसते हैं तो उन लोगों से क्या अपेक्षा की जाये जिनको शिक्षा से वंचित रखा गया है।
Neetu Singhal ने कहा…
ऐसा शासन किस काम का.....
virendra sharma ने कहा…

बंदिश तो शायद आयद न हो पाए लेकिन जन शिक्षण ज़रूरी है। क्या गंगा में नहाने से पाप कटते हैं। ये सवाल जगद्गुरुकृपालु महराज जी से काशी की विद्वत परिषद् ने पूछा था -उनका उत्तर इस प्राकर था -

एक बोतल में पेशाब (मूत्र )भरके ,ढक्कन लगाके उसे गंगा में एक माह पड़ा रहने दो। क्या अब यह पवित्र हो जायेगी। भाव यहाँ यह है जब तक अन्दर की गंदगी (विकार )दूर नहीं होंगें बाहर के कर्म काण्ड से शरीर की यात्रा से कुछ होने वाला नहीं है। फिर चाहे वह कुम्भ स्नान हो या कांवड़ियों का रेला।
virendra sharma ने कहा…
बंदिश तो शायद आयद न हो पाए लेकिन जन शिक्षण ज़रूरी है। क्या गंगा में नहाने से पाप कटते हैं। ये सवाल जगद्गुरुकृपालु महराज जी से काशी की विद्वत परिषद् ने पूछा था -उनका उत्तर इस प्रकार था -



एक बोतल में पेशाब (मूत्र )भरके ,ढक्कन लगाके उसे गंगा में एक माह पड़ा रहने दो। क्या अब यह पवित्र हो जायेगी। भाव यहाँ यह है जब तक अन्दर की गंदगी (विकार )दूर नहीं होंगें बाहर के कर्म काण्ड से शरीर की यात्रा से कुछ होने वाला नहीं है। फिर चाहे वह कुम्भ स्नान हो या कांवड़ियों का रेला।

ऐसी आस्था किस काम की


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